हमारे भारतवर्ष प्राचीन काल से ही तरह तरह के त्यौहार बनाये जाते है। कुछ त्यौहार धर्म के हिसाब से मनाये जाते है तो कुछ त्यौहार स्थान के हिसाब से भी मनाये जाते है। आज के इस आर्टिकल में हम गणगौर पर्व को लेकर बात करेंगे जो कि मुख्यतः हिन्दू धर्म में मनाया जाता है। ऐसे तो गणगौर पुरे भारत वर्ष में मनाया जाता है परन्तु राजस्थान में इसकी अलग ही झलक देखने को मिलती है। गणगौर का पूजन स्त्रिया अपने विवाहित जोड़े को सलामत रखने के लिए करती है आइये इस बारे में चर्चा करते है।
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गणगौर पर्व (Gangaur Festival):
- हर वर्ष राजस्थान के जयपुर शहर में माता पार्वती को समर्पित गणगौर का पर्व बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
- होली दहन के दूसरे दिन या फिर कहे धुलंडी के दिन से गणगौर पूजन आरंभ हो जाता है जो कि फिर लगातार 18 दिनों तक चलता रहता है।
- महिलाएं होली के दूसरे दिन गाती बजाती हुई होली की राख लेकर आती है तथा उसमें मिट्टी मिलाकर गिला करके उसकी 16 पिण्डिया मनाती है।
- इसके अलावा दीवार पर 16 रोली की बिंदी, 16 काजल की बिंदी तथा 16 मेहँदी की बिंदी हर रोज लगाती है।
- गणगौर पूजन स्त्रिया अपने पति की लम्बी आयु के लिए करती है तथा कुंवारी लड़किया भी अपने मनपसंद वर पाने के लिए गणगौर पूजन करती है।
- 18 दिन के पूजन के बाद गणगौर के अंतिम दिन एक विशाल मेले के आयोजन होता है। जिसमे भगवान शिव की प्रतिमा के साथ साथ सुसज्जित हाथी, घोड़ों का जुलूस व गणगौर की सवारी निकाली जाती है।
- इस गणगौर को पूजन करने के बाद कुँए में फेंक आते है।
- राजस्थान के इस पर्व को देखने देश विदेश से पर्यटक घूमने आते है।
- गणगौर पूजन का इतिहास बहुत पुराना है। यह पूजन मुख्यतः माता पार्वती तथा भगवान शिव के लिए किया जाता है।
- इस पूजन को महिलाएं मायके में अपने पति से छुपाकर कर करती है।
- कहा जाता है की पहले राजघरानो में रानियां तथा राजकुमारियां भी 18 दिन तक गणगौर पूजन करती थी। वह दीवार ईसर तथा गोरी की चित्र अंकित करती थी।
- मिट्टी की पिंडियो की पूजा कर दीवार पर मेहंदी, रोली व काजल की 16-16 बिंदिया लगाती थी। उसके साथ ही गणगौर के गीत गाया करती थी तथा बाद में कथा सुनी जाती थी।
- गणगौर पूजन को भगवान शिव और पार्वती के लिए ही इसलिए रखा जाता है क्योंकि भगवान शिव व माँ पार्वती को आदर्श दम्पति माना जाता है। इनके अटूट प्रेम की अनेको कहानियां हमने सुनी है।
गणगौर पर्व से जुड़ा भगवान शिव व माता पार्वती का इतिहास :
- मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है। की माता गणगौर अपने पीहर आती है तथा उसके पीछे पीछे ईसर गणगौर को लेने आ जाते है। इसलिए आखिरी दिन गणगौर को ससुराल के लिए विदा किया जाता है।
- एक बार की बात है की माता पार्वती भगवान शिव को अपने मन में पति मान चुकी थी। लेकिन उन्हें भगवान शिव को विवाह के लिए राजी करना था। जिसके लिए माँ पार्वती ने घोर तपस्या की तथा जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूरी की। इसीलिए कुवांरी लड़किया अपना मन पसंद वर पाने के लिए तथा विवाहित स्त्रिया अपने पति की लम्बी आयु के लिए ये पूजन करती है।
Q. गणगौर का त्यौहार कब शुरू होता है?
Ans. गणगौर पूजन हर वर्ष होली के दूसरे दिन से शुरू होता है तथा उसके बाद 18 दिन तक यह त्यौहार चलता है।
Q. गणगौर पूजन किसके लिए किया जाता है ?
Ans. गणगौर पूजन कुंवारी लड़किया अपने मनपसंद वर पाने के लिए करती है तथा विवाहित स्त्रिया अपनी पति की लम्बी उम्र के लिए करती है।
Q. गणगौर में किस की पूजा की जाती है ?
Ans. गणगौर में माँ पार्वती व भगवान सही की पूजा करती है।
Q. गणगौर को कुएं में क्यों डालते है ?
Ans. गणगौर को कुएं में इसलिए डाला जाता है क्योकि जब गौरा पीहर आई थी ईसर जी उनके पीछे पीछे उन्हें लेने आ गए फिर 18 दिन बाद गोरा की उसके पीहर से ससुराल जाने के लिए विदाई की जाती है। उसी विदाई के रूप में गणगौर को पानी में विसर्जित किया जाता है।
Q. गणगौर का अर्थ क्या है ?
Ans. गणगौर 2 शब्दों गण+गौर से मिलकर बना है जिसमें गण का अर्थ शिव (ईसर) होता है। तथा गौर का अर्थ पार्वती (गोरा) होता है।
Q. गणगौर पर्व किसका प्रतीक है ?
Ans. गणगौर पर्व अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
Q. गणगौर का मेला किस दिन लगता है ?
Ans. शुक्ल पक्ष की तृतीया पर।
दोस्तों आज की इस पोस्ट में हमने गणगौर पर्व के बारे में जाना है आपको ये पोस्ट कैसी लगी मुझे कमेंट करके जरूर बताये और ऐसी और पोस्ट पढ़ने के लिए आप हमे फॉलो कर सकते है।