Friday, September 20, 2024
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जानिए 23 मार्च का इतिहास क्यों बनाया जाता है इस दिन शहीद दिवस जानिए पूरी कहानी || Know why history is made on March 23, Martyrs Day, know the full story

शहीद दिवस {Martyrs Day} :  

  • भारत के इतिहास में 23 मार्च एक ऐसा दिवस है जो अपने अंदर कई राज छुपाये बैठा है। सन 1931 में 23 मार्च को कुछ हुआ था जिस कारण आज भी ये दिन याद रखा जाता है तथा इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

23 मार्च का इतिहास {History of 23 March} :  

  • 23 मार्च को शहीद दिवस हम उन महापुरुषों की याद में मनाते है जिन्होंने सन 1931 को आज की दिन हसंते हँसते अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिए थे।  उन्हीं की बदौलत आज हम स्वतंत्र जीवन जी पा रहे है।  

किन की याद में मनाया जाता है शहीद दिवस {Martyr’s Day is celebrated in whose memory} :  

  • शहीद दिवस युवा क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव थापर, व शिवराम राजगुरु की याद में मनाया जाता है। 23 मार्च 1931 को अंग्रेजो द्वारा इन युवा क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ाया गया था। जिसे आज हम शहीद दिवस के रूप में मनाते है। 
  • फांसी के बाद इन युवा क्रांतिकारियों को शहीद-ए-आजम के नाम से जाना जाने लगा। 

शहीद दिवस की पूरी कहानी {Martyr’s Day full story} : 

  •  भगत सिंह, सुखदेव थापर, व शिवराम राजगुरु ये तीनों ही गरम दल के सदस्य थे गरम दल अंग्रेजों से स्वतंत्रता पाने के लिए बनाया गया एक समूह था। जो की सड़को पर आंदलोन ब्रिटिश लोगों पर गोली बंदूक चलाना जैसे काम करता था। ये सब मिलकर किसी भी तरीके से देश को ब्रिटिश लोगो से आजाद करवाना चाहते थे। 
  • साल 1928 में भारत में आये साइमन कमीशन का विरोध करने पर अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय की लाठियों से मार मार के हत्या कर दी थी। 
  • जिसका बदला लेने के लिए भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद व अन्य सेनानी ने मिलकर 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश के एक पुलिस अफसर जेम्स स्कॉट के धोके में किसी अन्य अफसर जॉन सांडर्स की हत्या कर दी। 
  • इस हत्या के बाद भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त साथ  8 अप्रैल 1929 को ब्रिटिश असेंबली में बम फेंका।जहां पर भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 
  • किसी गद्दार द्वारा अंग्रेजों को भगत सिंह के सांडर्स की हत्या करने में शामिल होने का पता लग गया। और साथ ही सुखदेव और राजगुरु को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 
  • तीनों सेनानियों पर हत्या का केस लगाया गया तथा 2 साल बाद फांसी की सजा सुनाई गयी। 

इसे भी पढ़े भारतीय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का सम्पूर्ण जीवन परिचय

निश्चित दिनांक से पहले दी फांसी {hanged before the due date}:

  • तीनों सेनानियों को 24 मार्च 1931 को सुबह के 6 बजे की फांसी की सजा सुनाई गयी थी। 
  • जिसका पता लगने पर लाहौर सेंट्रल जेल के बाहर 2 दिन पहले ही भीड़ जमा होनी शूरू हो गयी। 
  • जो की ब्रिटिश पुलिस के कंट्रोल के बाहर होती जा रही थी। ऐसा देखकर ब्रिटिश लोगों ने फांसी का टाइम 12 घंटे पहले का कर दिया। तथा उसके बाद 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे इन तीनों सेनानियों को फांसी के फंदे पर लटकाया गया।  
  • इन तीनों सेनानियों को फांसी से पहले अंतिम बार किसी से मिलने की इजाजत भी नहीं दी गयी।     
  • ब्रिटिश लोगों ने जनता के गुस्से से बचने के लिए जेल की दिवार तोड़कर पीछे से 3 क्रांतिकारियों के शव को रावी नदी के तट पर जला दिया। 
  • जिसके बाद से हर साल 23 मार्च को इन 3 युवा क्रांतिकारी की याद में शहीद दिवस के तौर मनाया जाता है। 
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