अंग्रेजों के खिलाफ पहली चिंगारी लगाने वाले देशभक्त मंगल पांडे को अंग्रेज सिपाही को मारने के कारण उनको पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में 8 अप्रैल 1857 को फांसी दी गई थी|
मंगल पांडेय का सबसे ज्यादा बोलने जाने वाला नारा ‘मारो फिरंगी को ‘है। सन् 1984 में मंगल पांडेय के बलिदान के सम्मान में सरकार ने डाक टिकट जारी किया था|
मंगल पांडेय 22 वर्ष की उम्र में 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी में कलकत्ता के पास बैरकपुर में 34वीं बंगाल इन्फेंट्री में 1446 नंबर के सिपाही के तौर पर तैनात हुए| भारतीय इतिहास में मंगल पांडेय का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. वह पहले वीर सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई|
जल्लादों ने फांसी देने से कर दिया था इंकार
7 अप्रैल को मंगल पांडेय को फांसी की सजा सुना दी गई थी ,पर वहाँ के दो जल्लाद ने मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया, क्योकि जल्लाद पांडेय की देशभक्ति से प्रभावित थे | इसके बाद अंग्रेज़ ने कलकत्ता से जल्लाद बुलवाए और 8 अप्रैल को मंगल पांडेय को फांसी दे दी गयी|
मंगल पांडे की मृत्यु की याद आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में है| मंगल पांडे ने अपनी बलिदानी गाथा के माध्यम से भारतीय इतिहास में अहम जगह बनाई और आज भी उनकी याद वीरता और गौरव से याद की जाती |
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